【कोरबा टाइम्स】राज्य में डबल इंजन की सरकार होने के बाद से ही ट्रिपल इंजन लगाकर मालगाड़ियों से कोयले की ढुलाई कोरबा लोकसभा क्षेत्र में धड़ल्ले से की जा रही है। कभी-कभी तो और सुपर स्पेशल मालगाड़ी के माध्यम से कोयले की ढुलाई की जाती है। रेलवे द्वारा यहां सुविधा के नाम पर कोरबा का दोहन किया जाता है।
छत्तीसगढ़ राज्य और केन्द्र दोनों में डबल इंजन की सरकार चल रही है। डबल इंजन की सरकार जब से लागू हुई है तब से डबल इंजन के साथ ट्रिपल इंजन की मालगाड़ी से कोयले की ढुलाई और तेजी से बढ़ गई है। कोयला के कारण कोरबा में यात्री ट्रेन की सुविधा तो दूर यात्रियों की चालू गाड़ी भी बंद हो गई है जिसे चालू कराने पहल कारगर नही हो पाई है। विगत 10 माह से कोरबा और रायपुर के बीच लोकल चलने वाली मेमू बंद है। रेलवे की समस्या का समाधान तो दूर, व्यवस्था और बिगड़ गई है। यात्रियों की सुविधा के लिए चलाई जाने वाली एक्सप्रेस ट्रेन के समय का कोई ठिकाना नहीं है।
कोरबा लोकसभा में कोरबा का दोहन, सुविधा के नाम पर आम जनमानस को परेशानी
सभी गाड़ियां लेट लतीफ चल रही है। रवाना होने के समय और वापस आने के समय में 3 से 4 घंटे का अंतराल आम बात हो चली है। आज भी 7 घंटे देरी से शिवनाथ एक्सप्रेस पहुंची और 2 घंटे विलंब से लिंक एक्सप्रेस कोरबा आ रही है, इससे यात्रियों में नाराजगी दिख रही है।
0रेलवे के फाटक अक्सर रहते हैं बंद0
शहर की यातायात व्यवस्था पहले ही बिगड़ी हुई है और ऐसे में रेलवे फाटक राहगीरों के लिए और अधिक मुसीबत साबित हो रही। कोयला परिवहन के लिए शहर के बीच से ही रेल लाइन गुजरी है। इसकी वजह से जगह-जगह रेलवे क्रासिंग बनाया गया है। स्थिति है कि हर 10 मिनट के अंदर क्रासिंग बंद करना पड़ता है। भीड़ लगती है और आपाधापी के बीच रेलवे क्रासिंग के नीचे से जान जोखिम में डालकर लोग गुजरते हैं। त्यौहार के सीजन में स्थिति और खराब हो जाती है। लगातार नियमों का उल्लंघन करने वालों की संख्या बढ़ रही है। पछाड़ते हुए आगे निकलने की होड़ में कहीं भी बाइक घुसा देते हैं। अक्सर फाटक बंद मिलते हैं।
रेल संघर्ष समिति की कोई सुनता नहीं
रेल संघर्ष समिति कोरबा के द्वारा कई बार प्रदर्शन भी किया जा चुका है लेकिन ऊपर में बैठे लोगों के कानों में जूं तक नहीं रेंगती है। आज भी कोरबा के लोग ट्रेन की असुविधा को लेकर रोने को मजबूर हैं। हसदेव एक्सप्रेस जिनके आने का समय 10 बजे है, वह तो 3 बजे तक आती है, लिंक एक्सप्रेस भी 2 बजे तक आती है। जिससे लोग अधिक परेशान हो गए हैं।
0 सेकेंड एंट्री लगभग बंद के कगार पर 0
क्षेत्रवासियों की मांग पर रेल प्रबंधन ने स्टेशन की दूसरी तरफ कुछ वर्ष पहले पांच करोड़ से भी ज्यादा राशि खर्च कर विभिन्ना निर्माण कार्य के बाद सेकेंड एंट्री की शुरूआत की। फुट ओव्हरब्रिज का विस्तार कर दूसरे तरफ उतारने के साथ टिकट काउंटर खोला गया, पर महज एक साल के भीतर कर्मियों की कमी बता कर काउंटर बंद कर दिया गया। सेकेंड एंट्री अब नाममात्र की रह गई है। टिकट काउंटर समेत अन्य सुविधा नहीं होने के कारण से नाममात्र के यात्री ही इस तरफ से आवागमन करते हैं।
0परिसर में धूल व कोयला डस्ट का अंबार 0
सेकेंड एंट्री होकर स्टेशन आने-जाने वालों के लिए ट्रेन तक पहुंचना किसी चुनौती से कम नहीं है। सेंट्रल वर्कशाप से स्टेशन के ईस्ट केबिन के पास स्थित रेलवे फाटक तक इस मार्ग में कोयला लेकर भारी वाहनों का चौबीस घंटे आवागमन होता है। यदि ट्रेन गुजरने की वजह से फाटक बंद होता है तो वाहनों का लंबा जाम लग जाता है। बारिश होने पर यह मार्ग कीचड़ में तब्दील हो जाता है तो गर्मी व सूखे दिनों में मार्ग में लगातार दौड़ते भारी वाहनों की वजह से धूल व कोयला डस्ट के गुबार से छोटे वाहन चालकों का आवागमन मुश्किल हो जाता है। स्टेशन पहुंचने तक यात्री धूल व कोयला डस्ट से सराबोर हो जाते हैं।
0 कोरोना से लगा ग्रहण हटा नहीं 0
केन्द्र सरकार के द्वारा कोरोना संक्रमण में समय बन्द की गई कई यात्री ट्रेनों की सुविधा संक्रमण काल खत्म होने के बाद भी आज तक बहाल नहीं की जा सकी है। सीनियर सिटीजन, पत्रकार और अन्य प्रकार की मिलने वाली सुविधा आज भी बंद है। किराया भी डबल लिया जा रहा है किन्तु समय में कोई गाड़ी नहीं चल रही है जिसके कारण आज भी लोग ट्रेन की बजाय अपनी गाड़ियों से जाना पसंद करते हैं लेकिन गरीब, मध्यमवर्गीय आदमी तो ट्रेन में ही सफर करेगा और भुगतेगा भी।